...

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एक कहानी सी
वो अल्हड़ था, मैं दीवानी
वो मंद मंद मुस्काता
मैं ज़ोर ज़ोर चिल्लाती
वो कहता बिखरने को
मैं सिमटी परछाई सी
जब भी सोचती उसको मैं
कभी न सच्चा दिखता था
मैं दौड़ रही थी उसके पीछे
वो बार बार मुझे छूता
और भागकर छुप जाता था
मन की शहनाई बज उठी
मचल उठी थी रोम रोम
दौड़ गई मैं उस शहर को
जहां का था वो
किसे ढूंढने पहुंच गई मैं
जिसका कोई था न ठिकाना
नजरे ढूंढ रही थी उसको
मन चाह रहा था मिलना
पर ये क्या हुआ
दौड़ती दीवानी गिर गई
मुंह के बल,उठ कर देखी कोई न था
लौट गई,दोनो हाथो से खुद को पकड़ी
सिमट गई खुद में
सोचती हुई कोई
परी की कहानी सी।
# Dr amrita