...

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जंग अपने आप से


हताश हूँ, निराश हूँ

ज़िन्दगी तेरी रंगीन दुनियां के काले सायें
मे जकड़ी बहुत ही बेबस लाचार हूँ,

चोला जो तन को ढके वो नहीं, इक चीर के निकाला गया लिबास हूँ,

कत्ल कर मेरा, मेरे अहसासो का अब इक ज़िंदा लाश हूँ,

समझे मेरे जज्बातों को ऐसा ना कभी हुआ अब तो गुज़रे ज़माने का अफसाना हूँ,

जो कभी ना लौटे वो मंज़र, जिसे दोहराया ना जा सके वो फ़साना हूँ,

सरे आम आज़माइस की मेरे ईमान मेरे ज़मीर की उन्ही महफ़िलो की लुटती शान की जान हूँ,

मै अपने आप को भुला के ज़माने की बतायी गयी पहचान हूँ,

सताया है इस कदर हर किसी ने रूह को मेरी की अब दर्द का मै खुद मरहम हूँ,

हसना नहीं कोई हालत पर मेरे क्यूंकि दिल को पत्थर कर मजबूत बनी हूँ,

टूट गयी हूँ सब हार चुकी हूँ ज़िन्दगी की खुशियों से दूर उलझनों मे उलझी पड़ी हूँ,

पर अभी हौसलों मे जान बाकि है मन मे उम्मीदों की रौशनी रौशन है

मैं बिखरी पड़ी हूँ पर मै लड़ूंगी अपने सपने जियूँगी खुशियों की चादर का दामन जीवन को पहनाऊँगी

ये ज़िद है मेरी और अपनी ज़िद पर आखरी सांस तक अड़ी हूँ

ये जंग मेरी अपने आप से है, और मै अपने जीत के आखिर मुकाम तक पहुंच चुकी हूँ.......

_कल्पना@कल्पू_