...

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तन्हा सफ़र

© विवेक पाठक
तन्हा- तन्हा सफ़र यूँ ही, तन्हा रह गई जिंदगी,
बिन तेरे कुछ नहीं मैं, रोते-रोते कह गई जिंदगी।

क्यों तुमको इक़ बार भी, याद मेरी आती नहीं?
देखो न सदा भी मेरी, तुम तक फरियाद जाती नहीं।

तुम बिन अधूरे, सब ख़्वाब मेरे, ये सारी क़ायनात,
क्या कहूँ तुमसे, दूरी तुम्हारी, कैसे सह गई जिंदगी।

हर पल बस याद तुम्हारी, और रहे संग वीराना अपने,
तुम बिन कैसी खुशियाँ, तुम बिन कैसे कौन सपने।

पलकों से ढलके आँसू संग, जैसे बह गई जिंदगी।
तन्हा-तन्हा सफर यूँ ही, तन्हा रह गई जिंदगी।