अपने ही खून का माथे पर कुमकुम लगाती मैं!
उसके दुष्कर्मों में स्वयं को ढूंढती मैं
और अपने अस्तित्व में एक और दुष्कर्म जोड़ता हुआ वो।
मेरे आत्मसमर्पण से खेलता हुआ वो
मेरी एकनिष्ठता की आहूति देता हुआ वो
अपने अस्तित्व पर...
और अपने अस्तित्व में एक और दुष्कर्म जोड़ता हुआ वो।
मेरे आत्मसमर्पण से खेलता हुआ वो
मेरी एकनिष्ठता की आहूति देता हुआ वो
अपने अस्तित्व पर...