...

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तू रुक जा जरा मुसाफिर
तू रुक जा जरा मुसाफिर।
तू ले चल मुझे भी साथ अपने।
तू कुछ सोच ना रुक- रुककर, मैं कोई कांटा नहीं हूं।
तू मुड़कर देख जरा सा, और आंखो में बसा ले अपने।



अब तू ही सहारा, तू ही यारा।
कौन है इस जहां पर, बस तू ही सागर के किनारा।
अब छूटे ना तेरी राहें विचलित होकर।
तू मुझे कस ले अपनी बाहों में आगोश होकर।



जब देखी मेरी नजर तुझको।
ख़ामोश होकर वो शर्मा गई।
दीदार में तेरे डूब गया, तुझे ही देखकर।
मेरी नजर बस तुझे अपनी, प्रेमिका समझ गई।


क्या हाव- भाव है तेरे, मुड़कर देख जरा सा।
दूर मुझसे मत जा इक पल के लिए।
छुपा ले तू आकर मुझे, पलको तले।
इंतजार में हूं मुसाफिर तेरे लिए।


मनोज कुमार
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