...

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मुसाफिर हूं यारों....मुझे चलते जाना है बस चलते जाना...
चारों तरफ सन्नाटा है,
कानों से गुजरा सन्नाटा है।
भीड़ है मगर हर इंसान अकेला ,
है बचपन, है यौवन, है बुढ़ापा,
मगर जीवन पखा-पाखी का खेल है।
आया इंसान अकेला,
अकेला ही चला जाएगा।
रोता हुआ आता है,
रुला के चला जाएगा।
यह जिंदगी है तेरी-मेरी कहानी मुसाफि,
जब तूने किया था इश्क ,
तभी तो किसी से नफरत कर पाएगा।
आंसू तेरे तुझको मिटा देंगे,
मगर तेरी किस्मत में लिखा यूं मिट्टी ना पायेगा।
ऐ मुसाफिर तू रोता हुआआया है,
रुला के चला जाएगा।