...

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nanhi kaliyan
दो नन्ही कलियाँ हैं मेरे आंगन में
माँ माँ कर आंचल मेरा पकड़ लेती हैं
पल भर ओझल होते ही वो
सब कुछ छोड़ मेरे पीछे हो लेती हैं

ये कैसा अनोखा रिश्ता है जिसमे में बहती जाती हूँ
मैं उनकी हूँ वो मेरी हैं बाकी सब भूलती जाती हूँ

ऐसा लगता है मेरे जीवन की डोर है इनके हाथों में
जी रहीं हूँ वो बचपन जो था सिर्फ मेरी यादों में

इनकी अटखेलियों से मेरे आँगन में कोथुल रहता है
हर सामान अस्त व्यस्त बिखरा बिखरा सा रहता है

फिर सोचती हूँ में जरा क्या ये समय फिर लौट कर आएगा
फूल बनेंगी मेरी कलियाँ ये घर सिमटा रह जायएगा

दो नन्ही कलियाँ हैं मेरे आंगन में
माँ माँ कर आंचल मेरा पकड़ लेती हैं
पल भर ओझल होते ही वो
सब कुछ छोड़ मेरे पीछे हो लेती हैं

@ritz