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बचपन के दोस्त,
एक झटके में सभी अटके बातें याद आ गए, ना जाने कहां से लबों पर खुदा से किसी के लिए फरियाद आ गए ।

बीते दिनों की यादों ने एक हलचल मचा दी,
ठंडे पड़ी जिस्मों में आग लगा दी।

दोस्तों की यादों ने याद दिला दी बचपन की मस्तियां ,
ना चाहत है पाने की कोई हस्तियां ,
बस चाहत है दोस्तों संग करने को दोबारा मस्तियां

कभी हम सभी साथ थे ,
हम सभी के हाथों पर एक दूसरे के हाथ थे,
बचपन के दोस्त कुछ खास थे ,
दोस्तों के बिना एक जिंदा लाश थे।

हम सभी संग थे, जीवन में एक उमंग थी ,
आसमान खुली थी और हम सभी एक पतंग थे।

ना कोई बंधन था, ना कोई पाबंदी ,
हमसभी थे उन्मुक्त गगन के पंछी,
नियम तो हजार थे ,
दोस्ती में सभी नियम बेकार थे।

नियम बने थे तोड़ने के लिए,
दोस्ती थी ,दोस्तों का हाथ ना कभी छोड़ने के लिए।

ना जाति थी ,ना थी दौलत,
बस दोस्ती थी,और यही थी हमारी शोहरत

हम सभी नहीं होते थे हमेशा आसपास ,
परंतु सभी दोस्ती होते थे पल -पल दिल के पास पास

हम दोस्तों की दोस्ती कोई खास हैसियत ,
दोस्तों के बीच आने वाले की ना थी खैरियत।

झगड़े भी करते थे, गुस्सा भी करते थे,
फिर भी जान दोस्तों पर ही छिरकते थे ।


यादें तो हजार है पर यहां ,
बातें साझा करने को कोई शख्स कहां

समय के साथ सब बदल गए,
दोस्तों तो साथ ना रहे,बस यादें रह गए ।सबने अपने एक अलग घर बसा लिए,
दोस्ती तो आज भी है ,पर दोस्त नहीं फासले बना लिए।

काश! हम सबों की दोस्ती का भी एक घर होता,
जिसके अंदर इस सफर में हमसभी साथ हमसफ़र होते।

प्यार तो है आज भी, पर कहां है वह यार ,
काम तो हजार है, फिर भी दोस्तों का है इंतजार।