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प्रेम:ऐसा भी

© Shivani Srivastava
तुम प्रेम को बन्धन समझते हो,मैं प्रेम को बंधनहीन मानती हूं...
सीमाओं की समझ शायद है मुझे,अपनी सीमाओं में रहना भी जानती हूं।

प्रेम का इक ही स्वरूप तो नहीं है, वो भिन्न भिन्न रुपों में देखा जा सकता है.…
प्रेम कोई योजनाबद्ध कार्य नहीं,ये एहसास तो कोई कभी भी पा...