...

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आस/निराशा
समय बीत रहा पंख लगा के,

माथे पे शिकन, दिल में डर,चेहरे पे है उदासी..
ठाना था जो करके रहेंगे,
वही रह गया बाकी...
लेकर सपने आंखो में आया था न...
सोचा था खोलेगा पंख अपने, कुछ उम्मीदें साथ बांध लाया था न...
होंगे पूरे ख़वाब अपने, मिलेगी कामयाबी...
सोच रहे गई दिल में ये,
पर मंजिल मिलनी है बाकी..

समय बीत रहा पंख लगा के,
हो रहा शक काबिलियत पर...
खुद को कोस जाने क्यू रहा..??
खुद को दी थी हिम्मत जब,
क्यू अब खुद ही खुद को तोड़ रहा..
समय बीत रहा पंख लगाकर,
मंजिल मिलनी है बाकी..
होंगे पूरे वो सपने देखे थे जो..
ये आस है मन में बाकी..!!

Riya "Mikki"
© Riya "Mikki" writes