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मुंह ताका करते हैं
हर बात के लिए सबका मुंह ताका करते हैं
जीवन में ना जाने कितनी बार हम मरते हैं
किसी की नाक तो कभी इज्जत के लिए
हर कदम अपना सोच सोच कर धरते हैं
कितना कुछ घुट जाता है मन के भीतर ही
और वो कहते हैं हम बातें बहुत करते हैं
सब पहरे,ये दीवारें आज भी मेरे लिए हैं
फिर किस बराबरी का दम, हम भरते हैं
जाने क्यों जो जी में आया नहीं किया
है जग का लिहाज़ या खुद से ही डरते हैं
© बूंदें
जीवन में ना जाने कितनी बार हम मरते हैं
किसी की नाक तो कभी इज्जत के लिए
हर कदम अपना सोच सोच कर धरते हैं
कितना कुछ घुट जाता है मन के भीतर ही
और वो कहते हैं हम बातें बहुत करते हैं
सब पहरे,ये दीवारें आज भी मेरे लिए हैं
फिर किस बराबरी का दम, हम भरते हैं
जाने क्यों जो जी में आया नहीं किया
है जग का लिहाज़ या खुद से ही डरते हैं
© बूंदें
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