मुस्कराहट...!
कैसे कैसे सपने देखा करती थी मैं,
यकिनन नादान थीं मैं।
दुनियादारी की समझ अगर पहले ही आती,
ऐसे पंख फैलाने की जुर्रत ना करती।
इतने फासले क्यों है किताबी बाते और हकीकत...
यकिनन नादान थीं मैं।
दुनियादारी की समझ अगर पहले ही आती,
ऐसे पंख फैलाने की जुर्रत ना करती।
इतने फासले क्यों है किताबी बाते और हकीकत...