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अल्फ़ाज़ ए सुखनवर
“अल्फ़ाज-ए-सुखनवर ”

ढूंढता सब्र को मुसलसल
शाम- ओ- सहर
लम्हा गुजरता ही रहा
रेत के दरिया की तरह

सांस कटती थी मुंतज़िर
उम्र-ओ- शज़र
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