Apni khushi tum khud ho...
अपनी ख़ुशी टाँगने को, तुम कंधे क्यूँ तलाशती हो..?
कमज़ोर हो, ये वहम क्यों पालती हो..??
ख़ुश रहो क़ि ये काजल, तुम्हारी आँखों मे आकर सँवर जाता हैं..!
ख़ुश रहो क़ि कालिख़ को, तुम निखार देती हों..!!
ख़ुश रहो क़ि तुम्हारा माथा, बिंदिया की ख़ुशकिस्मती हैं..!
ख़ुश रहो क़ि तुम्हारा रोम-रोम, बेशक़ीमती हैं..!!
ख़ुश रहो क़ि तुम न होतीं, तो क्या-क्या न होता..?
न मकानों के घर हुए होते, न आसरा होता..!!
न रसोइयों...