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दगाबाज़ों का शहर है
#शहरीदृश्यकाव्य
ऐ नादां परिंदे, ज़रा बचना, बाज़ों का शहर है
नक़ाब ओढ़कर बैठे, दगाबाजों का शहर है।

छूने की उड़कर आसमां, की लाखों ख़्वाहिशें
ज़मींदोज़ होकर रह गयीं, परवाज़ों का शहर है।

दबती रहीं, घुटती रहीं, सिसक-सिसक कर जो
गुमनाम होकर खो गयीं, आवाज़ों का शहर है।

करतूतें काली, कितने ही,...