देश की गुहार
कारोबार, व्यापार, संसार,
बिखरा देश महान है,
बेचा देश को किसने अपने,
कौन गद्दार, हराम है।
बिका नहीं जो गैरों से,
कोड़ी उसकी लगाई आसमान है,
झुका नहीं था जो कभी,
कौन झुकाया, अपना अनजान है।
...
बिखरा देश महान है,
बेचा देश को किसने अपने,
कौन गद्दार, हराम है।
बिका नहीं जो गैरों से,
कोड़ी उसकी लगाई आसमान है,
झुका नहीं था जो कभी,
कौन झुकाया, अपना अनजान है।
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