...

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देश की गुहार
कारोबार, व्यापार, संसार,
बिखरा देश महान है,
बेचा देश को किसने अपने,
कौन गद्दार, हराम है।

बिका नहीं जो गैरों से,
कोड़ी उसकी लगाई आसमान है,
झुका नहीं था जो कभी,
कौन झुकाया, अपना अनजान है।

इलहाम नहीं इस बात का,
कितने मंत्री, संत्री शर्य्यार हैं,
कलम किए सर अपनों के,
कौन आतंकी, बगदाद है।

ज़ख्मी, लहू में सनाकर,
अधमरा, लथपथ छोड़ दिया,
असहाय, बेसहारा कर दिया,
कौन कहेगा हिंदुस्तान है।

अब कद्र नहीं देश की,
ना परवाह ए शान है,
लगता नहीं मुझे के अब,
ज़िंदा कोई इंसान है।
© a_girl_with_magical_pen