KiVad
बहुत मन किया तुम्हे वापस बुलाने को,
तुम्हे फिरसे गले लगाने को,
तुम्हारी मेहक में खो जाने को,
पर फिर भी तुम उस शाम की तरह ढलते जा रहे हो....
तुम्हे रोकने की वो आखरी आस,
हर दिन बढ़ाती जा रही हैं मेरी प्यास,
और फिर भी तुम उस शाम की तरह ढलते जा रहे हो...
और मैं आज भी उस किवाड़ पर खड़ी तुम्हारा इंतेज़ार कर रही हु...।।
तुम्हे फिरसे गले लगाने को,
तुम्हारी मेहक में खो जाने को,
पर फिर भी तुम उस शाम की तरह ढलते जा रहे हो....
तुम्हे रोकने की वो आखरी आस,
हर दिन बढ़ाती जा रही हैं मेरी प्यास,
और फिर भी तुम उस शाम की तरह ढलते जा रहे हो...
और मैं आज भी उस किवाड़ पर खड़ी तुम्हारा इंतेज़ार कर रही हु...।।