...

3 views

माँ की परिभाषा मैं दूँ कैसे?
माँ की परिभाषा मैं दूँ कैसे?
एक शब्द में कहूँ, माँ तो वो है…..
स्वयं भगवान हो जैसे।
माँ सृजनकर्ता है, माँ विघ्नहर्ता है।
माँ तुलसी जैसी पवित्र है….
माँ सबसे अच्छी मित्र है….
माँ जैसा न दुजा कोई चरित्र है।
माँ सारथी है जीवन रथ का…..
माँ मार्गदर्शक है हर पथ का।
माँ वेदना है, माँ करुणा है….
माँ ही मेरी वन्दना है।
माँ तो गंगाजल है, माँ खिलता हुआ कमल है।
माँ सफलता की कुँजी है, माँ सबसे बड़ी पूँजी है।
माँ रिश्तों की डोर है, बिन माँ तो रिश्तें कमज़ोर है।
माँ जैसा बहुमुल्य रिश्ता लोगों के पास है…..
पाने की चाहत में इतने अंधे हो गए हैं, फिर भी वो उदास है।
ईश्वर को धन्यवाद करो कि, हमारी माँ हमारे साथ है।
आज मैंने जो कुछ भी पाया है….
सर पर रहा हाथ सदा, हर पल रहा साथ मेरी माँ का साया है।
ज्योति वो शख़्स है, जिसमें दिखता उसकी माँ का अक्स है।
माँ हमारे लिए पैसे जोड़ती है….
हमारी खुशी के लिए अपने सपनों तक को तोड़ती है।
माँ ने जिस समर्पण भाव से निभाया है अपना फर्ज़…..
सात जन्मों तक भी न उतरेगा वो कर्ज़।
जो कहते हैं- माँ मेरा तुमसे कोई वास्ता नहीं….
याद रखना हमेशा, इस पृथ्वी पर आने का माँ के अलावा दुजा कोई रास्ता नहीं।
जो आज भी अपनी माँ से जुड़ा है…..
वो माँ को कभी खुद से दूर न करना,
क्युंकि, माँ के रूप में स्वयं मिला उन्हें खुदा है।
माँ बनकर रही मुसीबत में भी परछाई….
मेरा जो अस्तित्व है, इसमें दिखती है मेरी माँ की सच्चाई।
माँ पूरी करती है हर ख्वाहिश…..
लगाकर अपनी इच्छाओं पर बंदिश।
माँ तो खूबसूरत- सा रिश्ता है……
माँ तो सच...