...

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तुम्हारे जी का जंजाल है.....
महका हुआ बदन तुम्हारा, और बहकी-बहकी सी चाल है
उलझी हुई जुल्फें तेरी, कश्मीरी सेब के माफ़िक गाल है

इस से कभी उकता मत जाना, ये दौर है तेरे तबस्सुम का
चढ़ती हुई तेरी ये शोख़ जवानी, तुम्हारे जी का जंजाल है

जब भी सर पे तू आँचल ओढ़े, शर्म-ओ-हया झलकती है
धानी रंग की चुन्नी तुम्हारी लगे जैसे कोई रेशमी रुमाल है

नाज़ुक सी कली हो जाना, दिल के बाग में खिली हो जाना
उभरा हुआ यौवन तेरा, और उसपे क्या ग़ज़ब का ढाल है

किसी बहाने छत पे आए तो दिल में होती एक हलचल है
ना दिखे जो छत पर तो फिर हम आशिक़ों की हड़ताल है

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© कुन्दन प्रीत