...

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एक दफा........ आलम रुक्सती का
एक दफा
आप खफा,
रुसवा होकर आपसे
रुक्सती से
हम रुक्सत हुए
एक दफा
गर ताल्लुकात हुए भी
अल्लाह की नेमत मै, एक दफा

थें दुआओ मै
मेरे हमदर्द
बनकर,
हर दफा.....

जिक्रनामा मै
तेरा ही जिक्र रहता
अक्सर
अक्स तेरा
दिखाता, आइना
रूबरू हुए हम ज़ब
एक दफा

फूलों की महक के मेहमान
होते
एक दफा
आने से पहले जो तेरे
खिली गुलाब की कली
गुलाम होते
हम - तेरे
हर दफा....
चाहत तेरी
मोहब्बत मेरी
और वो जूनून
इश्क़
सुरूर दिल का
आशिक़ हुए हम
एक दफा,

बेवक़्त, बेवजह
दिल बेबाक़
बेतहँसा
यूँ दिल्लगी बिन मौसम
हवाओ ने पर्दा किया

निगाहों का
जिसके कातिल बने
हम रूबरू
हुए
हर दफा


इस बेपनाह मोह्हबत
के ठहरे जो
दीवाने हम
एक दफा
दास्तां ऐ मोहब्बत
वफ़ा कर जाना
हर दफा..... हर दफा.... हर दफा
एक दफा.......



दिव्या मिश्रा... एहसास मेरी कलम से( एक दफा )













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