फ़िर मौत को कामयाब देखूँ
ज़िन्दगी का सफ़र अब सुक़ूँ से मुमकिन कहाँ
कि हर मोड़ पे तुमसे बिछड़ने का अज़ाब देखूँ
कि हर तरफ़ बिखरे पड़े हैं तुम्हारी जुदाई के काँटे
बड़ी आरज़ू थी की राहों में इश्क़ के ढेरों ग़ुलाब...
कि हर मोड़ पे तुमसे बिछड़ने का अज़ाब देखूँ
कि हर तरफ़ बिखरे पड़े हैं तुम्हारी जुदाई के काँटे
बड़ी आरज़ू थी की राहों में इश्क़ के ढेरों ग़ुलाब...