ग़ज़ल _: हैं एक शायर का ख़्वाब आँख़ें
बह़र_:- 12122,12122
झुकीं झुकीं बा हिजाब आँख़ें
हैं एक शायर का ख़्वाब आँख़ें
वो हिज्र में मेरे कितना रोये
ये मांगती हैं हिसाब आँख़ें
किया जो दीदार मैनें उसका
तो हो गईं कामयाब आँख़ें
मैं हाल ए दिल इनमें पढ़ रहा हूँ
ये बन गईं हैं...
झुकीं झुकीं बा हिजाब आँख़ें
हैं एक शायर का ख़्वाब आँख़ें
वो हिज्र में मेरे कितना रोये
ये मांगती हैं हिसाब आँख़ें
किया जो दीदार मैनें उसका
तो हो गईं कामयाब आँख़ें
मैं हाल ए दिल इनमें पढ़ रहा हूँ
ये बन गईं हैं...