...

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एक अणु में इतनी ऊर्जा
हो विघटित विध्वंस रचे,
कर दे क्षण में सृष्टि मौन,

एक अणु में इतनी ऊर्जा,
आखिर ये भर जाता कौन?

सूक्ष्म अति इतना परमाणु,
ना नयनों को दिख पाता है,

इसमें इतनी शक्ति कैसे,
नगर भी नहीं टिक पाता है?

पात्र बड़ा हो जितना उतना,
हीं तो मिलता शीतल जल,

लेकर बर्तन साथ चले हो,
जितना उतना मिलता फल।

अतिदीर्घ होता है बरगद,
देता कितनों को आश्रय,

तीक्ष्ण ग्रीष्म में भीष्म ताप से,
करता रक्षण हरता भय।

जब एक कटहल भी लोटे में ,
रख पाना अति दुष्कर है।

अल्प बीज में बरगद जैसों ,
को आखिर रख पाता कौन?

एक अणु में इतनी ऊर्जा,
आखिर ये भर जाता कौन?

हो विघटित विध्वंस रचे,
कर दे क्षण में सृष्टि मौन।

अजय अमिताभ सुमन
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