...

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कहाँ जा रहे हैं
कहाँ चले जा रहे हैं,
मंज़िल से कोई नाता नहीं,
और रास्ते.... रास्ते हैं कि जुड़े जा रहे हैं,
मगर तिलिस्म ये कि आगे भी बढ़ जाऊँ,
सोचूँ वो पीछे छूट गए,
जैसे ही देखूँ आगे दूर क्षितिज में वो ही नज़र आ रहे हैं,
पहले यूँ होता था तो बड़ा तिलमिलाती थी,
मगर अब स्वीकृति अपना ली
ये सब जो घट रहे किस्से
न समझकर भी लगता समझ आ रहे हैं,
समझ आ रहे हैं।
©jignaa___ .
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