...

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तेरे शहर में
तेरे शहर में हमसे बसर जिंदगी ना हुई
कभी खुद को कभी तेरा शहर देखते हैं

उनकी शिकायतों की दौड़ मेरी सांसों से लगी
अब किसमें है कितना दम देखते हैं

रिश्तो की भीड़ में भी अकेले ही रह गए
जिसे अपना कहते हैं हम वो घर देखते हैं

हम भी मिजाज औरों से अलग रखते हैं
सुकूं जन्नत में कहां हम तो दर-ए- जहन्नुम देखते हैं

अब दानों से कुछ कम वास्ता रख 'शुभ'
यहां अपने ही अर्थी का वजन देखते हैं
#shubh
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