श्रीमद भागवत गीता के अदभुत 71 रहस्य
मैं सभी भूतों में व्याप्त 'आत्मा' हूँ।
मैं सभी भूतों के आदि-मध्य-अंत - भूत 'परमात्मा' हूँ।
मैं अदिति के बारह पुत्रों (आदित्यों) में 'विष्णु' हूँ।
मैं सभी ज्योतिर्धरों में 'सूर्य' हूँ।
मैं समस्त उनचास वायुदेवताओं में उनका 'तेज' (मरीचि) हूँ।
मैं सभी नक्षत्रों में उनका अधिपति 'चंद्रमा' हूँ।
मैं सभी वेदों में ‘सामवेद' हूँ।
मैं सभी देवों के बीच 'इंद्र' हूँ।
मैं सभी इंद्रियों में 'मन' हूँ।
मैं समस्त भूतप्राणियों में उनकी जीवन-शक्ति 'चेतना'।
मैं एकादश रुद्रों में 'शंकर' हूँ।
मैं सभी यक्षों तथा राक्षसों के बीच 'कुबेर' हूँ।
मैं आठ वसुओं के बीच 'अग्नि' हूँ।
मैं समस्त शिखरशील पर्वतों में 'समेरु' पर्वत हूँ।
मैं पुरोहितों में प्रमुख 'बृहस्पति' हूँ।
मैं सेनापतियों में 'स्कंद' हूँ।
मैं सभी जलाशयों के मध्य 'सागर' हूँ।
मैं महर्षियों के मध्य महर्षि 'भृगु' हूँ।
मैं समस्त वाक् के मध्य एकाक्षर 'ओंकार' (ॐ) हूँ।
मैं यज्ञों के बीच 'जपयज्ञ' हूँ ।
मैं स्थावरों में 'हिमालय' हूँ।
मैं समस्त वृक्षों के बीच 'अश्वत्थ' (पीपल) हूँ।
मैं देवर्षियों में 'नारद' हूँ।
मैं गंधर्वों के मध्य 'चित्ररथ' हूँ।
मैं सभी सिद्धों के मध्य 'कपिलमुनि' हूँ।
मैं सभी अश्वों के मध्य अमृत- सहित उत्पन्न 'उच्चैःश्रवा' हूँ।
मैं श्रेष्ठ हाथियों में 'ऐरावत' हूँ।
मैं मनुष्यों के बीच 'राजा' (राम) हूँ।
मैं आयुधों में 'वज्र' नामक हथियार हूँ।
मैं सभी गायों के बीच 'कामधेनु' हूँ।
मैं जन्मकारणों (उत्पत्तिहेतु) में 'कामदेव' हूँ।
मैं सभी सर्पों के बीच 'वासुकि' हूँ।
मैं नागों में...