...

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इश्क
इश्क हुआ और बार बार हुआ
हर बार लगा के पहली बार हुआ....

काँटे भी सुहाने थे बागाँ-ए-इश्क के
बाद तुम्हारे लेकिन हर फुल खार हुआ !

इक तुम ही थी चारागर मेरे दर्द की
बा'द जो हुआ बस दिल पे वार हुआ !

बडे हसिन थे वो पल हमारी वस्ल के
न पुछो बाद मे वक्त कैसे गुजा़र हुआ !

बात तुम्हारी कुछ और ही थी "रेवती"
खो गई तुम और आसमाँ गुबार हुआ !
© संदीप देशमुख