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गुड़िया रानी के फ्रॉक (एक बाल कविता )
दादी माँ ने फ्रॉक सिले हैं
रंग बिरंगे प्यारे प्यारे
किसी मे लगी लेस पाइपिंग
किसी में बटन हैं ख़ूब सारे
लाल गुलाबी हरा नारंगी
सब रंग इनके सुन्दर हैं
किसी पे बना है चाँद और सूरज
किसी पे भालू बंदर है
छोटी सी ये गुड़िया रानी
पहन इन्हें इठलाती है
खेल रचाती तरह तरह के
करतब ख़ूब दिखाती है
छू ले जो कोई फ्रॉक इसके
आँख उसे दिखलाती है
"मेले हैं ये छाले कपले "
तुतली डाँट लगाती है
माँ जब कहती नहा ले गुड्डो
इसका मन डर जाता है
नए फ्रॉक का लालच ही
ये मुश्किल काम कराता है
जब थक जाती उछल कूद कर
चुपके से सो जाती है
दादी माँ के सिले फ्रॉक में
स्पर्श उन्हीं का पाती है

पूनम अग्रवाल





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