कृष्ण अबिनाशी
नज़र उठे तो देखूं तुझे,
कलम उठे तो बस लिखूं तुझे ।।
हवा चले तो ढूंढू तुझे,
भूख प्यास जगे जो सोचूं तुझे ।।
मुस्किल की हर पल मैं
मुस्कायूं सोच कर बड़ा नटखट है तू छोरा ।।
खुशी की हर पल मैं रोयूं,
तेरे करुणा की सोचके ।।
मन में बसा बिहारी ऐसे,
सब काम दाम जरूरी छूटे मूझसे ।।
फिर भी काम सारे बन जावे है,
मेरी मर्जी की न पर उसके मर्जी के होवे ।।
खुशी क्या और गम क्या मन ये सोचे,
प्रेम में गिरिधारी के, वक्त की ठिकाना न होवे ।।
लगता है जब भी रुक गई हूं घाट पर यमुना जी ने,
वक्त भी रुक जाती है जैसे श्री चरणों के आड़े ।।
रुकी हुई सारी काम वो करवाए,
जैसे कोई जादू की छड़ी घुमाए ।।
© Shyam_Kripaki_Pyasi
कलम उठे तो बस लिखूं तुझे ।।
हवा चले तो ढूंढू तुझे,
भूख प्यास जगे जो सोचूं तुझे ।।
मुस्किल की हर पल मैं
मुस्कायूं सोच कर बड़ा नटखट है तू छोरा ।।
खुशी की हर पल मैं रोयूं,
तेरे करुणा की सोचके ।।
मन में बसा बिहारी ऐसे,
सब काम दाम जरूरी छूटे मूझसे ।।
फिर भी काम सारे बन जावे है,
मेरी मर्जी की न पर उसके मर्जी के होवे ।।
खुशी क्या और गम क्या मन ये सोचे,
प्रेम में गिरिधारी के, वक्त की ठिकाना न होवे ।।
लगता है जब भी रुक गई हूं घाट पर यमुना जी ने,
वक्त भी रुक जाती है जैसे श्री चरणों के आड़े ।।
रुकी हुई सारी काम वो करवाए,
जैसे कोई जादू की छड़ी घुमाए ।।
© Shyam_Kripaki_Pyasi