...

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CHULBULI
चैत्र, वैशाख मैं बैरंग सी हो गयी थी जिन्दगी
तब सावण मैं रंग भरने आयी मेरी चुलबुली

चलती थी तो मानो हवाएं भी कह उठती थी।
सावण के बारिशों मैं भी कमाल लगती थी मेरी चुलबुली।
धीरे धीरे मेरी ओर चुलबुली की दोस्ती हो गयी
उससे घंटो बातें करना अच्छा लगने लगा
रात को एक प्यारी सी हँसी के साथ
वो हमें गुड नाईट कहती थी।।
एक आदत थी उसकी
चल अब सो जा।।
सुबह क्लास भी जाना है।

समय गुजरा,इम्तिहान नजदीक आ गया
अब चुलबुली पढ़ने लगी थी
ओर मुझे भी कहती थी पढ़ने को
चल अब पढ़ ले बातें बाद मैं करना

इम्तिहान के बीच मैं चुलबुली का जन्मदिन भी आ गया।
पर उस दिन मैं थोड़ा गुस्सा भी हो गया था
क्योंकि मैं पहले बधाई नही दे पाया...
इम्तिहान बीत गयी सब घर चले गए
मेरी चुलबुली भी

कुछ दिन बाद चुलबुली घर से लौटी
मानो मेरे चेहरे पर एक खुसी की...