आग से आह तक
लपटों के एक भयानक मंज़र को देखने
मैं भी दौड़ती वहाँ पहुँच गई,
एक प्यारे अशियाने को चिता बनता देख
मेरे दिल की धड़कने भी सहम गई।
उस लक्ष्मी को देखा जिसके
आँगन से खुशियाँ बहती थीं,
आज उस आँगन को धुआँ होता देख
वो आँसू कैसे रोक सकती थी।
मन की व्यथा तो क्या ही समझ पाती उसकी
पर फ़िर भी रुक ना पाए मेरे कदम,
उसका हाथ पकड़ कर बस यही बोल पाई,
"ये...
मैं भी दौड़ती वहाँ पहुँच गई,
एक प्यारे अशियाने को चिता बनता देख
मेरे दिल की धड़कने भी सहम गई।
उस लक्ष्मी को देखा जिसके
आँगन से खुशियाँ बहती थीं,
आज उस आँगन को धुआँ होता देख
वो आँसू कैसे रोक सकती थी।
मन की व्यथा तो क्या ही समझ पाती उसकी
पर फ़िर भी रुक ना पाए मेरे कदम,
उसका हाथ पकड़ कर बस यही बोल पाई,
"ये...