ऐसा क्यों होता है
ऐसा क्यों होता है वो ही सूरज वो ही किरणें,
पर सर्दी की धूप लगती सबको प्यारी,
वहीं गर्मी की धूप लाती सबके लिए परेशानी!
ऐसा क्यों होता है वो ही मुख,
पर प्यार भरे अल्फाज़ करते सबको सम्मुख,
वहीं कठोर कडवे अल्फाज करते सबको विमुख!
ऐसा क्यों होता है वो ही मानव वो ही सृष्टि न्यारी,
पर कोई अति प्यारी और किसी से दुश्मनी भारी!
पर सर्दी की धूप लगती सबको प्यारी,
वहीं गर्मी की धूप लाती सबके लिए परेशानी!
ऐसा क्यों होता है वो ही मुख,
पर प्यार भरे अल्फाज़ करते सबको सम्मुख,
वहीं कठोर कडवे अल्फाज करते सबको विमुख!
ऐसा क्यों होता है वो ही मानव वो ही सृष्टि न्यारी,
पर कोई अति प्यारी और किसी से दुश्मनी भारी!
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