...

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ख़ैरियत पूछने वालों ने ख़ैर कर दी...
आपने यहाँ आने में बड़ी देर कर दी।
इस हिज़्र ने मेरी हस्ती ज़ुबेर कर दी।।

तेरे बाद भी कितने ख़ैर ख़्वाह आये,
ख़ैरियत पूछने वालों ने ख़ैर कर दी।।

रूहानी इश्क़ तो अब भी जवाँ है यार,
मगर रूह ने ग़ालिब को ज़ेर कर दी।।

अब इंतज़ार नहीं चाँद निकलने का,
मैंने जीने की हर उम्मीद ढेर कर दी।।

न पूछ ज़न्नत से लेके ज़हन्नुम तक,
कब इस ज़िन्दगी ने मेरी सैर कर दी।।

नाराज़ दिखना मना था महफ़िल में,
इसलिए सिफ़र ने चश्म तरेर कर दी।।
*ज़ुबेर = बहादुर
*ज़ेर = कमजोर
*तरेर = टेढ़ी
© संजय सिफ़र