...

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मुलाक़ात
ये आख़री मुलाक़ात है।
क्या याद करोगे तुम, मेरा तुम्हारे हाथों को थामना।
हो के बेपरवाह भीड़ में वो गले लगाना।
अब जब न होंगे हम तो क्या फिर भी तुम यूँ ही मुस्कुराओगी।

मैं तो सोच भी नही पाता तुम बिन एक पल भी जीने को।
और तुम कहते हो कि भूल जाऊं तुम्हे।
तो क्या ये तय हुआ कि तुम्हारी मेरी ये आख़री मुलाक़ात है। -वैभव रश्मि वर्मा
© merelafzonse