...

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मन में अविरल साथ तुम्हारा,एहसास तुम्हारा।
मन में अविरल साथ तुम्हारा,एहसास तुम्हारा।

मीट जाए मन 'गर तो, कविता बनकर रह जाती है।
अपनेपन की यह रश्मीयां,सविता बनकर छां जाती है।

हो नया सवेरा, तुम अमृतवेला का पहला एहसास हो।
साथ तुम्हारे चल रहा हुं, जहां मधुर निवास हो।

नील गगन की प्रतिभा बन कर, तप्तमान तुम तुरंग हो।
कुविचारों के शलभ घटां को,अपना प्रकाश दिखाते हो

हे अमर प्रीत तुम अभिजात हो।
मेरे अनित्य जीवन में तुम सौगात हों।
मन में अविरल साथ तुम्हारा, एहसास तुम्हारा।

@kamal.muni