...

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बचपन खो सा गया है।
बचपन खो सा गया है,
नवाचार की कवायद से थककर सो गया है।

मिट्टी के किलो मे अब उदासी सी छाई है,
कागज की नाव को छोटे नाविक की याद आई है।

झूले चकरी सब सुस्त से पड़े है,
फिसलपट्टी भी अब चुपचाप खड़ी है।

पड़ोस की गलियो को अब नन्हे कदमो का इंतजार है,
कागज की पतंग आसमान से मिलने को तैयार है।

कंचो की जोड़ी को उंगली की तलाश है,
आम इमली के पेड़ो को बस एक निशाने की आस है।

खिलौनो की दुनिया को अलमारी का खेद है,
बच्चो की टोली अब मोबाइल मे कैद है।