"श्राप जो मै कभी थी नही- नारी"
नाम जो मेरा था नही,
उसे मेरा जो बनाया गया।
श्राप जो मै कभी थी नही,
तेरी असमर्थता ने है बना दिया।।
प्रसाद जो मै बनी नही,
तो अभिशाप का भी मै रूप कहाँ ।
पहचान यदि मै तेरी थी नही,
तो मेरे निशां पर भी तेरा हक़ कहाँ ।।
श्राप जो मै कभी थी नही,
तेरी असमर्थता ने है बना दिया।।
पाया जो मैने जन्म था,
तेरे आंगन को रोशन करने को ।
तो चुभा वही उजियारा...
उसे मेरा जो बनाया गया।
श्राप जो मै कभी थी नही,
तेरी असमर्थता ने है बना दिया।।
प्रसाद जो मै बनी नही,
तो अभिशाप का भी मै रूप कहाँ ।
पहचान यदि मै तेरी थी नही,
तो मेरे निशां पर भी तेरा हक़ कहाँ ।।
श्राप जो मै कभी थी नही,
तेरी असमर्थता ने है बना दिया।।
पाया जो मैने जन्म था,
तेरे आंगन को रोशन करने को ।
तो चुभा वही उजियारा...