"कहने को तो - ये मर्द होते हैं"
कहने को तो, ये मर्द होते हैं..
पर इनके भी अपने कुछ दर्द होते हैं !
जिम्मेदारी का ये थामें पुलिंदा..
हम समझें के ये खुदगर्ज होते हैं !
भोर से सांझ, कितना ही ये टूटें..
इनके हिस्से बस फर्ज़ होते हैं !
ये खुशियाँ कमाएं अपनों के लिए..
इनकी झोली में बस कर्ज होते हैं !
इनकी उम्मीद है- सूझ-बूझ का मरहम..
सांसों तले इनकी, दबे कई मर्ज़ होते हैं !
कोई मिलाये एक बार इनके कंधे से कंधा..
फिर देखें, भूले शेर कितने अर्ज़ होते है !
कहने को तो, ये मर्द होते हैं..
पर इनके भी अपने कुछ दर्द होते हैं !
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