...

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अनसुलझी
बातें तेरी मैं रोज़ ही सुनता हूँ,
पर आज ख़ामोशी गूँजी।
तेरे जवाब मेरे सवालों के,
अंजान सवाल सी मुँजी।
शायद मैं गलत हूँ,
शायद मैं ही ज़्यादा सोच रहा हूँ,
फिर भी कुछ खटक सी रही है,
कुछ है जो लग रही अनसुलझी।

© Sudeb