...

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वक्त
वक्त के उस दौर पे खड़े हैं,
जहां अपने ही बेगाने_ से हैं,

मन तो मेरा भी करता है
कहीं दूर निकल जाऊं,
फिर पीछे, नजर करते ही
वो दूरियां नजर आ जाती हैं,
जहां से मुड़कर कहीं दूर_ दूर तक
कोई नजर नहीं आता,
कोशिशें बहुत की मगर
सबकुछ होकर भी
कुछ कमी नजर आई
खैर ये तो महज एक कल्पना थी,
मगर...