...

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यह राह- यह सफ़र ।
बातें अधूरी रह गई,
लफ़्ज़ों की कमी समा गई,
बहुत कुछ चर्चाएँ बाकी हैं -
पर कहीं व्यक्त की मंदी समा गई।

राह तो चल परे,
पर मंज़िल ने मुकद्दमा लगा ली ।
ठहरा व्यक्त का कोई अनंत नह मिल पायीं।

कुछ इज़हार खुद से भी कर ली ,
पर सईद व्यस्त और क़िस्मत की-
सच ही मंदी समा गई ।




© _silent_vocal_