...

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अज़ीब फसाना वक्त का
कल तक जो लब मेरे माथे चूमा करती थी,
उसी से मेरे लिए बद्दुआ निकल पड़ा।
कल तक जो हाथ मेरी जुल्फें संवारा करती थी,
वही मुझपें थप्पड़ उठा पड़ा।
कल तक जिसकी बातों से हंसी आया करती थी,
उसी की बातें रुलाने लगी।
कल तक जिसके ख्याल से भी मुस्कुराया करती,
आज होने के ऐहसास से भी सहेम जाती हूं!
कल तक जिसके साथ सुकून महसूस होता था,
आज उसके नाम से भी बेचैनी होती है।
कल तक जो सुकून की वज़ह था,
आज मेरी खौफ की वजह बन चुका।

जानें ये कैसा वक्त है आया?
जो कल का पल गुज़र गया और
मुझको जाने कहां, किस मोड़ पर खड़ा कर गया?
कल तक जिसके ख़्वाब देखती थी।...