...

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छिपना छूपाना
छिपना छिपाना प्रियवर जो तुम खेल रहे हो मेरे संग
तड़प तड़प कर ढूंढू इधर मै छिपे हुए हो कही जो तुम
आंख से आसू झर झर बहते कहते हर पल बात ये तुझसे
ढूंढू ढूंढू मैं अगर गुम हो जाऊं तो रोएगा तू सर रखकर किसपे

हरगली हर मोहल्ले को देखा हर घर के मैं कोने को देखी
मिला न मुझको कही पर भी तू फिर सिसक सिसक कर रोने लगी
सूरज को संदेशा भेजा रात को चांद से मेने कहा
टीम टीम टीम टीम चमकते तारों से अपने दुख को बया किया

धरती के एक छोर से मैने आसमान को भेद दिया
चीख जो निकली दिल से ऐसी धरती अम्बर कांप गया
बनकर पागल फिरती हु मैं होकर पागल ढूंढू तुझे
पागल की भी कुछ सीमा होती मिलकर बात ये पागल कहने लगे

प्रियवर जो तुम मिले न मुझको मैं रो रो के मर जाऊंगी
नयन अधर की तृषा मिटे न जब तक तेरा प्रेम न पाऊंगी
मै हु दिवानी प्रेम मे तेरे तू कब तक मुझसे छुपा रहेगा
मैं हु जोगन तेरी तेरे मद में पागल हो जाऊंगी

© _Ankaj Rajbhar 🥺