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ढूंढ रहा कोई
माला का मनका टूट रहा कोई।
अंकुर बन दाना फूट रहा कोई।।
जी चाहता है तुम्हें मांग लूं ।
दूर अंबर में तारा टूट रहा कोई।।
वफ़ा के बदले वफ़ा चाहूं।
मरू में जल बहता ढूंढ रहा कोई।।
बाबुल सोचे रोऊं या हंस दूं।
बरसों का नाता छूट रहा कोई।।
खुद से भी मैं भागता फिरूं।
मन बंजारा कहता ढूंढ रहा कोई।।
© बूंदें
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