...

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मशवरा
ज़िंदगी बचानी हो
जां कभी छुड़ानी हो
हर घड़ी, कि हर लम्हा
आंख जो चुरानी हों
ख़ुद ही मैं समझ लूंगा
तुम जवाब मत देना

राबता सिमट जाए
दिल कहीं भटक जाए
बात आ के लब पे जब
ख़ुद ब ख़ुद अटक जाए
फिर हमें सताने को
और ख़्वाब मत देना

ज़िन्दगी के मानी हैं
ज़िन्दगी बचानी है
गुल नहीं चुराने हैं
क्यारियां लगानी हैं
शाख़ से जुदा कर के
अब गुलाब मत देना

हम तो ऐसे लड़के हैं
शायरी जो पढ़ते हैं
दिल पे ज़ख़्म खाते हैं
हुस्न से ही मरते हैं
हाज़िरी कभी अपनी
बे हिजाब मत देना

इंतख़ाब करते थे
ख़ुद ख़राब करते थे
तुम ही थे मुहब्बत में
जो हिसाब करते थे
अब मुझे ये नफ़रत भी
बे हिसाब मत देना

शाबान नाज़िर -
© SN