...

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सहर है कैसा @ lockdown
जिंदगी शाम सी ढली, फिर ये है सहर कैसा,
सलाखों में सुलगती जिंदगी हो दोपहर जैसा।
कदम उसके उठे, दो चार बढ़ने को बड़े आतुर,
किसे मालूम था, वो मिट रहा है इक कहर जैसा।।

फूल की रंगत बदली यूं कि जैसे धूप परछाईं,
बदन जलता रहा और रूह ने राहत नहीं पाई।
निकलकर नंगे पांव, चल रहे हैं नंगी सड़को पर,
मुसाफिर भी नहीं है, न कोई मंजिल के राही।।