yadon se lipti tanhai
आज फिर खिड़की पे मेरे
शाम उतर आई है,
कुछ धुंधली यादों से मेरी
लिपटी हुई तन्हाई है,
मैं अब भी मुंतजिर हूं तेरी
यादों की कीमत अदा कर के,
तेरे हिस्से का वक्त आज भी
तन्हा गुज़रती आई है......
- प्रज्ञा
शाम उतर आई है,
कुछ धुंधली यादों से मेरी
लिपटी हुई तन्हाई है,
मैं अब भी मुंतजिर हूं तेरी
यादों की कीमत अदा कर के,
तेरे हिस्से का वक्त आज भी
तन्हा गुज़रती आई है......
- प्रज्ञा