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लघुकथा : मेरी नई बहन प्रकृति
बड़ी तैयारियां चल रही थी लोगों के घर जाने की क्योंकि राखी आने वाली थी। मेरे सारे दोस्त भी घर चले गए, जाने को तो मेरा भी था पर मेरी नई कंपनी में मुझे छुट्टी नहीं मिली । जो अभी ही मैंने ज्वाइन की थी कंपनी यूएसए बेस्ड है जिसके कारण सभी की छुट्टी कैंसिल कर दी। यह मेरी पहली राखी थी जब मैं घर ना जा पाया, फिर क्या था इस राखी मैंने इंदौर मे ही मनाने का फैसला किया। वैसे कोई मेरी सगी बहन नहीं है, फिर भी गांव में कुछ बहने है जो राखियां बाधंती थी और मेरे पूरी कलाई भर जाते थी, पर इस बार मुझे राखी अकेले ही मनानी थी। पूरा घर सुना था क्योंकि मेरे दोनो रूममेट घर चले गए थे। राखी वाले दिन भर सोया ओर घर पर बात की फिर शाम को घूमने चला गया। सुना था कि खाली कलाई अच्छी नहीं रहती है, पर इस बार लगा कि कलाई खाली ही रहने वाली थी। वैसे अभी तक मुझे बहन की कमी कभी नहीं खली पर आज थोडा अजीब लग रहा था मन बहुत उदास हो रहा था यही सोच कर एक फ्लाईओवर पर जाकर बैठ गया वहा से इंदौर के नजारे देखने लगा कितना प्रदूषण था, फिर सोचा कि लोगो ने प्रकृति की हालत खराब कर रखी है, जगह जगह प्रदूषण, पेडो की अंधाधुंध कटाई, इसलिए ही बारिश नही हुई शायद पर इसका जिम्मेदार कोन है। सभी लोग शायद इसके जिम्मेदार हे कही न कही मै भी तो हु यही सोचकर दृश्यो को निहार रहा था की इसी बीच मेरे मन मे ख्याल आया ओर मैं फ्लाईओवर से नीचे आ गया। नीचे आकर देखा तो एक पेड़ था जो बहुत गहरा था जिस पर कुछ बेल लटकी हुई थी वहां से थोड़ी सी बेल तोड़ी और एक छोटी सी प्यारी सी राखी बना दी और मैंने अपनी ही कलाई पर बांध ली इस तरह मैंने प्रकृति को अपनी बहन बना लिया। और पेड़ को प्रणाम करके अपने घर की ओर निकल गया अब मुझे खुशी थी कि मेरी एक नई बहन बन गई । मैंने सोचा कि प्रकृति ने हमेशा बहुत कुछ दिया है पर मेने प्रकृति को क्या दिया, शायद कुछ भी नहीं। उसी वक्त मैंने फैसला लिया प्रकृति मेरी बहन है अब इसको सदाबहार रखने की जिम्मेदारी लेता हूं। ओर भी कई वादे मेने मेरी बहन से किये ओर हर वादे पर खरा उतरने की कोशिश करूंगा।


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