...

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स्त्री
स्त्री होना तब गुनाह हो जाता हैं, जब
स्त्री को कोई समझ नही पाता हैं।
माना एक औरत सबका दिल रखती हैं,
लेकिन आप ये क्यू भूल जाते हैं, औरत
भी एक दिल रखती हैं।
हर गाली में क्यू इसको खींच लाते हो,
आप भी एक औरत से जन्में हो हर
बार क्यू भूल जाते हो।
घर संभालना एक हुनर हैं उसका,
लेकिन उसके इस रूप को आप
काम वाली बाई समझ जाते हो।
जिंदगी उसकी हैं ,फैसले उसके हैं,
फिर हर बार क्यों आप उसके भाग्य विधाता
बन जाते हो,
औरत होना ही इस पुरूष प्रधान...