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यह आसमां।
यह आसमां भी क्या खूब है
गढ रखा भू पर इसने हीं तो
जितने दिखते रंग और रूप हैं
क्या खूब सजावट कर डाली है
पर इसने रखी सब झोली खाली है।।
एक कली खिला बना उसे फली
हँसी हर होठों पर सजा लाता है
ढोल ताशे ठुमक तब उठते हैं
फिर इस हँसी के पीछे छिपे दर्द को
सहजता से कितनी यह छिपा जाता है।।
दे थपकी हर कदम ताल
बुनता जाता वह अगोचर अगम्य
हर सजाए चलंत के लिए
अद्भूत एक अबूझ सा जंजाल
उलझा जब सबको एक जाल में देता है
अलग कर किसी एक को तब वहाँ से
वह क्यूँ खुश हो लेता है,
वह क्यूँ खुश हो लेता है।।
यह यक्ष प्रश्न फिर सामने है
जब सब सब उसके नाम से है
फिर एक एक कर वह क्यूँ लेता है
कुनबा उसका पूरा का पूरा क्या
इसी तरह छीन छीन खुश हो लेता है।।
🙏राजीव जिया कुमार,
सासाराम,रोहतास,बिहार।
© rajiv kumar
गढ रखा भू पर इसने हीं तो
जितने दिखते रंग और रूप हैं
क्या खूब सजावट कर डाली है
पर इसने रखी सब झोली खाली है।।
एक कली खिला बना उसे फली
हँसी हर होठों पर सजा लाता है
ढोल ताशे ठुमक तब उठते हैं
फिर इस हँसी के पीछे छिपे दर्द को
सहजता से कितनी यह छिपा जाता है।।
दे थपकी हर कदम ताल
बुनता जाता वह अगोचर अगम्य
हर सजाए चलंत के लिए
अद्भूत एक अबूझ सा जंजाल
उलझा जब सबको एक जाल में देता है
अलग कर किसी एक को तब वहाँ से
वह क्यूँ खुश हो लेता है,
वह क्यूँ खुश हो लेता है।।
यह यक्ष प्रश्न फिर सामने है
जब सब सब उसके नाम से है
फिर एक एक कर वह क्यूँ लेता है
कुनबा उसका पूरा का पूरा क्या
इसी तरह छीन छीन खुश हो लेता है।।
🙏राजीव जिया कुमार,
सासाराम,रोहतास,बिहार।
© rajiv kumar
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